बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 गृह विज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- निगरानी में बुनियादी अवधारणाएँ और तत्वों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर -
निगरानी संबंधी बुनियादी अवधारणाएँ
निगरानी और मूल्यांकन का आधार चार अवधारणाएँ हैं। ये क्रमश: हैं- संचालनात्मक निवेश (उदाहरण के लिए, प्रति परिवार निवेश), संचालनात्मक कार्य क्षमता (उदाहरण के लिए, दौरों, बैठकों, प्रस्तुतियों और पूर्व परीक्षणों की संख्या, प्रति विकास कामगार), तकनीकी कार्य-क्षमता (उदाहरण के लिए, निर्गत और मूल्य वर्धित), और विस्तार - प्रेरित परिवर्तन (उदाहरण के लिए, आय और आय वितरण)।
निगरानी के अंतर्गत क्षमता (capability), प्रभावकारिता (effectiveness), और दक्षता (efficiency) को शामिल किया जाता है। वहीं, प्रभाव (impact) को मूल्यांकन के अंतर्गत शामिल किया जाता है।
(i) क्षमता कार्यक्रम पर भौतिक, वित्तीय और मानव संसाधन पर नियंत्रण की सूचक है। क्षमता के आधार पर अपने ग्राहकों (संबंधितों) (उदाहरण के लिए, माँ, बच्चे) की सेवा कर पाना संभव होता है। इसे पहुँच से बाहर, गहन, तकनीकी दक्षता और भौतिक एवं वित्तीय संसाधनों आदि के द्वारा दर्शाया जाता है।
(ii) प्रभावकारिता 'किस स्तर पर लक्ष्य प्राप्त किए गए हैं' को दर्शाता है। यह इच्छित उत्पादन अथवा परिणाम के लिए प्रयास की पर्याप्तता की सूचक है। निर्धारित समय-सीमा के भीतर इच्छित परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रत्येक विकास परियोजना में प्रभावकारिता का अध्ययन रखा जाता है। परियोजना की प्रभावकारिता की निगरानी करना काफी महत्वपूर्ण होता है।
(iii) दक्षता का अर्थ है इस प्रकार सबसे बढ़िया तरीके से काम करना कि कम से कम प्रयास किए जाएँ और न्यूनतम समय बर्बाद हो। लॉन रॉबर्ट्स ने दक्षता को 'मितव्ययिता का स्तर कहा है जिसमें प्रक्रिया के दौरान संसाधनों का उपयोग किया जाएं, विशेष तौर पर समय और धन का' के रूप में परिभाषित किया है। दक्षता की निगरानी अनिवार्य है। इससे यह जाँच की जाती है कि कहीं संसाधनों की बर्बादी तो नहीं है और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि परियोजना निर्धारित समय पर पूरी हो जाए।
(iv) प्रभाव को नवजात मृत्यु दर (Infact Mortality Rate - IMR), मातृ मृत्यु दर (Maternal Morality Rate - MMR), अध्ययन के न्यूनतम स्तर (Minimum Levels of Learning-MLL) और अध्ययन उपलब्धियाँ आदि सरल - साधारण सूचकों की सहायता से मापा जा सकता है। किसी भी क्षेत्रपरक कार्यक्रम की सफलता के लिए इस प्रकार के सूचक निर्णायक परीक्षण प्रदान करते हैं।
निगरानी संबंधी बुनियादी तत्व
निगरानी और मूल्यांकन के अध्ययन में निम्नलिखित आधारों (परियोजना की संरचना) को स्पष्ट रूप से समझने की आवश्यकता है। कार्यक्रम का उद्देश्य 'संसाधनों' के समूह को वांछित 'परिणाम' में बदलना होगा।
संसाधन हमारे लिए आगत (inputs) का काम करते हैं और परिणाम निर्गत (output) का। (हालांकि यहाँ प्रयुक्त शब्दों का अपेक्षाकृत अधिक विशिष्ट अर्थ है, लेकिन यहाँ पर हम इसे सामान्य संदर्भ (generic sense) में प्रयुक्त कर रहे हैं)। आगत से निर्गत की यात्रा एक निश्चित क्रम के अनुसार संपन्न होती है। इस निश्चित क्रम का विवरण इस प्रकार है-
(i) आगत (Input) - परियोजना के लिए उपलब्ध कराई गई वस्तुएँ, वित्त - व्यवस्था, सेवाएँ, जनशक्ति, प्रौद्योगिकी और अन्य संसाधन आगत हैं। इन्हें निर्गत के लिए उपलब्ध कराया जाता है।
(ii) परिणाम (Results) - कुछ चीजें तत्काल घटित होती हैं और कुछ अंत में जबकि, कुछ चीजें इन दोनों स्थितियों के बीच घटित होती हैं। क्रम के अनुसार, कृषि परियोजना के परिणाम को आमतौर पर तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है— उत्पादकता, उत्पादन और आय।
(iii) परिणाम (Output) (तात्कालिक परिणाम) - विशेष उत्पाद अथवा सेवाएँ जिससे किसी कार्यकलाप अपने निवेश (inputs) से उत्पादन करने की संभावना होती है (कृषि के मामले में), अत्यधिक सिंचाई, ऊर्वरक के प्रयोग, सृजित की गई स्वास्थ्य सुविधा आदि की आवश्यकता पड़ेगी।
(iv) प्रभाव (effect) — किसी परियोजना में संभावित प्रभावों की अनुभूति से ऊपर परियोजना के प्रयोग के परिणाम से वांछित प्रभाव - तात्कालिक परिणाम उत्पन्न होंगे। हाल ही की निगरानी और मूल्यांकन साहित्य में, प्रभावों का वर्णन परिणाम (outcomes) के रूप में किया गया है।
(v) संघात (Impact) - परियोजना प्रभावों का परिणाम (व्यापक दीर्घकालिक उद्देश्य - रहन-सहन का स्तर और व्यक्तिगत गैर-सामुदायिक दोनों स्तरों पर गरीबी को कम करना)। संघात का वर्णन व्यक्तियों की बनाए समुदाय या क्षेत्र के लिए परिणामों के रूप में किया गया है। इसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तथा प्राथमिक, द्वितीय और तृतीय स्तर भी शामिल हो सकते हैं।
किसी भी परियोजना में यह अनुक्रम (आग्रत प्रभाव (परिणाम) - संघात) अन्त: निर्मित होता है और सुनिश्चित करता है कि परियोजना की सफलता के लिए ये चरण प्राथमिक 'स्थिति' के रूप में हों सभी परियोजनाएँ निश्चित 'धारणाओं' पर बनती हैं अर्थात् यदि हम आगत प्रदान करेंगे तो प्राप्तकर्ता इसका समुचित रूप से प्रयोग करेंगे और अनिवार्य निर्गत उत्पन्न करेंगे ताकि इन निर्गतों से आमदनी (आय) में वृद्धि हो और आय में वृद्धि से लोगों का रहन-सहन का स्तर उच्च होगा। मानसून की लहरें, मूल्य में उतार-चढ़ाव, परिवर्तनशील राजनीति, परिवेश इत्यादि जैसे अन्य कारक भी जो 'खतरे' के कारक कहलाते हैं और जो परियोजना के परिणामों पर प्रभाव डालते हैं। अतः प्रत्येक परियोजना में ऐसी कार्यविधि विकसित करना जरूरी है जिसमें अनिवार्य स्थितियाँ (दशाएँ) हों, धारणाएँ सत्य हों और झटके को बर्दाश्त करने के लिए खतरे के प्रभावों को कम किया जा सके। ऐसी क्रियाविधि 'निगरानी' कहलाती है।
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